Sunday, July 8, 2007

बारिश

बारिश में टपकती बूंदें
धरती को ललचाती बूंदें
अब थोडी थम गयी हैं
रस्ते के ख्ड्डों में जम गयी हैं

आसमान ने जब धरती को देखा होगा
उसके दिल में इसे छूने का अरमान जागा होगा
मेघ मल्हार के राग गाती बूंदें
अपने प्रियतम को आगोश में लेटी बूंदें

इन बूंदों को देख कर मन रोमानी हो जाता है
इसे धरती में युं मिलते देख, अपना प्रियतम याद आता है

जाने कहां है, और क्या कर रहा है
शायद मेरी तरह बेठ कर, याद मुझे कर रहा है
ना किया हो, इसकी कोई वजह नहीं
उसकी
याद ही है बारिश की वजह भी

सोजन्य से - आलोक जैन के अच्छे मित्र

1 comment:

Unknown said...

thanks buddy

aajkal india main baarish ho rahi hai aur aisa hi kuch wahan chal raha hai