Sunday, July 15, 2007

गर्ल फ्रेंड (१९६०) - आलोक जैन

किशोर:
कश्ती का खामोश सफ़र है, शाम भी है तनहाई भी
दूर किनारे पर बजती है लहरों की शेहनाई भी
आज मुझे कुछ कहना है, आज मुझे कुछ कहना है

लेकिन ये शर्मीली निगाहें मुझको इजाज़त दें तो कहूं
खुद मेरी बेताब उमंगें थोड़ी फुरसत दें तो कहूँ
आज मुझे कुछ कहना है, आज मुझे कुछ कहना है

सुधा:
जो कुछ तुमको कहना है, वो मेरे ही दिल की बात ना हो
जो है मेरे ख्वाबों की मंज़िल, उस मंज़िल की बात ना हो

किशोर:
कहते हूए डर सा लगता है, कह कर बात ना खो बैठूं
ये जो ज़रा सा साथ सा मिला है, ये भी साथ ना खो बैठूं

सुधा:
कब से तुम्हारे रास्ते में, मैं फूल बिछाए बैठी हूँ
कहना है जो कह भी चुको, मैं आस लगाए बैठी हूँ

किशोर:
दिल ने दिल की बात समझ ली, अब मुँह से क्या कहना है
आज नहीं तो कल कह देंगे, अब तो साथ ही रहना है

सुधा:
कह भी चुको जो कहना है

किशोर:
छोडो, अब क्या कहना है ।

1 comment:

Unknown said...

arre wah khush kar diya mere bhai