Thursday, July 5, 2007

हमारे प्यारे कालेज के दिन

यह डिग्री भी ले लो, ये नौकरी भी ले लो,
भले छीन लो मुझ से "यु एस ए" का वीसा ...........
मगर मुझ को लौटा दो कालेज का कैंटीन,
वो चाय का पानी वो तीखा समोसा ..........

कड़ी धूप में अपने घर से निकलना,
वो प्रोजेक्ट की खातिर शहर भर भटकना,
वो लेक्चर में दोस्तों की प्रोक्सी लगाना
वो सर को चिढाना, वो हवाई जहाज उडाना,
वो सब्मीशन की रातों को जगना जगाना,
वो जुबानी की कहानी, वो प्रेक्टिकल का किस्सा .....

बिमारी का रीज़न दे के समय बढाना,
वो दूसरों के assignments को अपना बनाना,
वो सेमीनार के दिन पैरों का chhatpatanna,
वो वर्कशोप में दिन रात पसीना बहाना,
वो परीक्षा के दिन का बेचैन माहौल,
पर वो माँ का विश्वास - टीचर का भरोसा .....

वो पेड़ों के नीचे गप्पे लडाना,
वो रातों में ड्राइंग शीट्स बनाना,
वो परीक्षाओं के आख़री दिन थीएटर में जाना,
वो भोले से फ्रेशेर्स को हमेशा सताना
विदाउट एनी रीजन कॉमन ऑफ़ पे जाना,
टेस्ट के वक़्त टेबल में किताबों को रखना,
इसी तरह टीचर्स को देना झांसा ........

कालेज की सबसे पुरानी निशानी,
वो चाय वाला जिसे सारे कहते थे ... जानी ,
वो जानी के हाथों की चाय मीठी,
वो चुपके से जरनल में भेजी हुई चिट्ठी,
वो पढ़ते ही चिट्ठी उसका भड़कना,
वो चहरे की लाली वो आंखों का गुस्सा .....
कालेज की वो सारी लम्बी सी रातें,
वो दोस्तों से कैंटीन में प्यारी सी बातें,
वो गेद्रिंग के दिन का लड़ना झगड़ना,

वो लड़कियों का यूँही हमेशा अकड़ना,
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई,
वो कालेज, वो बातें, वो शरारतें वो जवानी ...
काश हम फिर दोहरा सकते कहानी ......
वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी ....

सोजन्य से: राजीव सक्सेना के मित्र

1 comment:

Unknown said...

Sexy bhai ki yeah bhent par main bhi kuch aise hi likhna chahta tha and was searching for lyrics to be able to write, lekin ab jab kisi aur ne likh di hai to main doobara apne efforts nahin lagaoonga