Saturday, August 18, 2007

आख़िर क्यों (१९८५) - बलविंदर सिंह "बल्ली"

दुश्मन ना करे दोस्त ने वो काम किया है
उम्र भर का गम हमे इनाम दिया है

तूफान में हम को छोड़ के साहिल पे आ गए
नाखुदा का हम ने इन्हें नाम दिया है

पहले तो होश छीन लिए जुल्म-ओ-सितम से
दीवानगी का फिर हमे इल्जाम दिया है

अपने ही गिराते हैं नशेमन पे बिजलियाँ
गैरों ने आ के फिर भी उसे थाम दिया है

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