Saturday, August 18, 2007

हेरा-फेरी (१९७६) - देवेन्द्र कुमार गुप्ता "लोयड"

बरसों पुराना ये याराना एक पल में क्यों टूटा
यार मेरे तू ऐसा रूठा
जैसे मेरा रब रूठा
बरसों पुराना ...

तेरा जहाँ भी गिरा पसीना मैंने ख़ून बहाया
तेरा लहू बना क्यों पानी यह कैसा दिन आया
वो तेरी दोस्ती थी मेरी जिन्दगी
बनके पुजारी प्यार में तुने प्यार का मंदिर लूटा
जैसे मेरा रब रूठा
बरसों पुराना ...

लहरों पर ज्यों गिरे लकीरें टूटी कसमें सारी
रेत की एक दीवार थी मेरे यार की झूठी यारी
ये सितम क्या हुआ क्या लगी बद-दुआ
जिस्म से जैसे जान जुदा हो साथ तेरा यूं छूटा
जैसे मेरा रब रूठा
बरसों पुराना ...

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