एक दफा वो याद है तुमको
बिन बत्ती जब साइकिल का चालान हुआ था
हमने कैसे भूखे प्यासे बेचारों सी एक्टिंग की थी
हवलदार ने उल्टा एक अठन्नी देकर भेज दिया था
एक चवन्नी मेरी थी
वो भिजवा दो
और भी मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
वो भिजवा दो
सावन के कुछ भीगे - भीगे दिन रखे हैं
और तुम्हारे ख़त में लिपटी राख पडी है
वो राख भुजा दो
और भी मेरा कुछ समान तुम्हारे पास पड़ा है वो भिजवा दो
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में एक बहार पहुंच कर लॉट आई थी
वो बाजवा दो
वो भिजवा दो
और भी मेरा कुछ समान तुम्हारे पास पड़ा है वो भिजवा दो
एक सौ सोलह चांद की रातें
और तुम्हारे काँधे का तिल
गीली मेंहदी की खुशबू
झूठ-मूठ के वादे कुछ
वो भिजवा दो
और भी मेरा कुछ समान तुम्हारे पास पड़ा है वो भिजवा दो
Thursday, July 5, 2007
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1 comment:
LLyod bhai
u r great
i delebrately didnt write popular name of the writer of this very sweet kavita, well i am really influenced by the writer of this kavita, well Sardar Sampooran Singhji is none other than "Gulzar"Saheb
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