कभी मिलना कभी खोना
कभी साथ साथ चलना
यही है जिन्दगी का मेला
तुम साथ साथ हो ना ?
कहीँ भीड़, है घनेरी
कहीँ राह है अँधेरी
कहीँ रौशनी की खुशियाँ
कहीँ मछलियाँ सुन्हेरी
कभी सीढ़ियों पर चढ़ना
कभी ढाल पर फिसलना
यही है जिन्दगी का मेला
तुम साथ साथ हो ना ?
कभी चर्खियों के चक्कर
कहीँ शोर बाजे सा
कुछ फिकरे और धक्के
कुछ मुफ़्त बँटा सा
रंगीन बुलबुलों सा
कभी आसमान मैं उड़ना
यही है जिंदगी का मेला
तुम साथ साथ हो ना ?
कहीँ मौत का कुँआ है
कहीँ मश्खरों के जादू
कभी ढ़ेर सारे गुब्बारे
कहीँ मोगरे की खुशबू
कभी जिंदगी को सिलना
कभी दर्द को पिरोना
यही है जिन्दगी का मेला
तुम साथ साथ हो ना ?
आलोक जैन
कृपया ध्यान दें: इस में मेरी भावना कुछ अपने पुराने दोस्तों और दिनों को याद करके लिखी गयी थी। मगर आप लोग यह नहीं सोचना कि मैं कवि बन गया हूँ।
Monday, July 2, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment