Friday, July 6, 2007

मिस्टर एक्स इन बोम्बे - देवेन्द्र कुमार शर्मा

मेरे महबूब क़यामत होगी
आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी
मेरी नज़रें तो गिला करती हैं
तेरे दिल को भी सनम तुझसे शिक़ायत होगी
मेरे महबूब ...

तेरी गली में आता सनम
नगमा वफ़ा का गाता सनम
तुझसे सुना ना जाता सनम
फिर आज इधर आया हूँ मगर यह कहने में दीवाना
ख़त्म बस आज यह वहशत होगी
आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी
मेरे महबूब ...

मेरी तरह तू आहें भरे
तू भी किसी से प्यार करे
और रहे वो तुझसे परे
तूने ओ सनम ढाये हैं सितम तो यह तू भूल ना जाना
कि ना तुझसे भी इनायत होगी
आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी
मेरे महबूब ...

मेरे महबूब क़यामत होगी
आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी
नाम निकलेगा तेरा ही लब से
जान जब इस दिल-ए-नाकाम से रुखसत होगी
मेरे महबूब ...

मेरे सनम के दर से अगर
बाद-ए-सबा हो तेरा गुजर
कहना सितमगर कुछ है खबर
तेरा नाम लिया जब तक भी जिया ए शमा तेरा परवाना
जिससे तुझे आज भी नफरत होगी
आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी
मेरे महबूब ...

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