जो सपना कल रात संजोया
आज सुबह वो कितना खोया
तुम होती तो ...
कुछ हँसते
कुछ बातें करते
कुछ सुनते कुछ अपनी कहते
तुम होती तो ...
कल जाने हम और कहाँ हो
दुनिया की कश्ती में बेठे
ना जाने किस और रवाँ हो
आज शाम
कितनी बेबस थी
तुम होती तो ...
कुछ लड़ते कुछ गप्पें करते
ये फुर्सत पल कितने दिन के
कट जाते यों हँसते खिलते
तुम होती तो ...
साथ बेठ्ते
मन खिड़की के दर खुल जाते
खुली हवा कुछ अन्दर आती
उमस भरे मन को
थोड़ी रहत मिल जाती
तुम होती तो ...
क्या मालुम कि
तुम कैसे हो
बहुत व्यस्त हो
या मेरी तरहा ही गुमसुम
घुटे घुटे हो कुछ तो बोलो
कोई खबर दो
तुम होती तो ...
हाथ थाम कर
साथ बेठ्ते
फिर आँखो की नमी हमारे
सूखे मन को तर कर जाती
जीवन पर चिक्टीं परतें भी
धुल कर चमक खुशीं ले आती
तुम होती तो ...
आलोक जैन
Monday, July 2, 2007
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